विदा लेने का समय
तुम अकेले होते ही
अपने संसार में
चले जाते हो
यही प्रतीक्षा है जो
करती हूँ
एक नटी की तरह
तुम्हारा एकाकी होना
बेहतर समय है संतुलन का
कविता में उतरते हो जब
बात करना होता है सहज
रुमानियत को संभाले
अहसासों को पीते हुए
कदम दर कदम
देखती हूँ एक नया संसार
उचित समय होता है
जब तुम रच चुके होते हो
एक कविता
मैं पार कर लेती हूँ रास्ता
विदा लेने का
एक खिडकी खुली रहती है
मेरी
एक खिडकी खुली रहती है सदा
झांकते हुए कितने ही चेहरे
घर को टटोलते हैं
दरवाजे पर चाहे
लगा गया है सांकल समय
जानबूझकर
अब समंदर पर ताला तो
लग नहीं सकता
उसे भी हक है जानने का कि
खारे और मीठे का अंतर
जाना गया कि नहीं
पहचाना गया कि नहीं
कौन है जो खोलेगा यह द्वार
मैं हूँ कि फेंकती रही हूँ सदा
चाहा अनचाहा इस खिडकी से
आया है संदेसा फिर से
हर रात में
चमेली महकी थी
सपने खिले थे
हर दिन
रात रानी से झरे थे
कुछ कलियाँ
रह गईं थी बाकी
बहती बयार के हाथ में
एक कहानी सुनी थी
भंवरों कि ज़ुबानी
तितलियों के साथ
संदेसा आया है फिर से
बंजारा है प्यार - 1
किन्ही
अनचीन्ही दिशाओं में
कुछ खोजते रहना
हर कदम
ना आदि ना अंत
रह गए है पगडंडियों पर
क़दमों के आकार
धरती पर सुगंध
आसमान में नीलापन
गाडी में ले जाता है
फूलों के रंग
आँखों के सपने
मन की कुलांचे
हवा की थपकियाँ
और हमारी नींद
अपनी धुन में झूमता गाता
बंजारा है प्यार
चला जा रहा जिसका
ना आदि ना अंत
बंजारा है प्यार -2
वह बांसुरी बजाता
हर गली हर गाँव से
गुजरता रहा
निकल रही कुछ तान ऐसी कि
समाने लगी अंतस में
घरों से निकल आए
उछालते कूदते
हँसते गाते कितने ही मन
चल दिए पीछे पीछे
फिर दुनिया उनके
पीछे पीछे
ले चला ना जाने
किस दिशा किस देश में
खोजने निकले थे जब
देखा था हर ओर
जहाँ जहाँ
खतरे के निशाँ बने थे
तुम अकेले होते ही
अपने संसार में
चले जाते हो
यही प्रतीक्षा है जो
करती हूँ
एक नटी की तरह
तुम्हारा एकाकी होना
बेहतर समय है संतुलन का
कविता में उतरते हो जब
बात करना होता है सहज
रुमानियत को संभाले
अहसासों को पीते हुए
कदम दर कदम
देखती हूँ एक नया संसार
उचित समय होता है
जब तुम रच चुके होते हो
एक कविता
मैं पार कर लेती हूँ रास्ता
विदा लेने का
एक खिडकी खुली रहती है
मेरी
एक खिडकी खुली रहती है सदा
झांकते हुए कितने ही चेहरे
घर को टटोलते हैं
दरवाजे पर चाहे
लगा गया है सांकल समय
जानबूझकर
अब समंदर पर ताला तो
लग नहीं सकता
उसे भी हक है जानने का कि
खारे और मीठे का अंतर
जाना गया कि नहीं
पहचाना गया कि नहीं
कौन है जो खोलेगा यह द्वार
मैं हूँ कि फेंकती रही हूँ सदा
चाहा अनचाहा इस खिडकी से
आया है संदेसा फिर से
हर रात में
चमेली महकी थी
सपने खिले थे
हर दिन
रात रानी से झरे थे
कुछ कलियाँ
रह गईं थी बाकी
बहती बयार के हाथ में
एक कहानी सुनी थी
भंवरों कि ज़ुबानी
तितलियों के साथ
संदेसा आया है फिर से
बंजारा है प्यार - 1
किन्ही
अनचीन्ही दिशाओं में
कुछ खोजते रहना
हर कदम
ना आदि ना अंत
रह गए है पगडंडियों पर
क़दमों के आकार
धरती पर सुगंध
आसमान में नीलापन
गाडी में ले जाता है
फूलों के रंग
आँखों के सपने
मन की कुलांचे
हवा की थपकियाँ
और हमारी नींद
अपनी धुन में झूमता गाता
बंजारा है प्यार
चला जा रहा जिसका
ना आदि ना अंत
बंजारा है प्यार -2
वह बांसुरी बजाता
हर गली हर गाँव से
गुजरता रहा
निकल रही कुछ तान ऐसी कि
समाने लगी अंतस में
घरों से निकल आए
उछालते कूदते
हँसते गाते कितने ही मन
चल दिए पीछे पीछे
फिर दुनिया उनके
पीछे पीछे
ले चला ना जाने
किस दिशा किस देश में
खोजने निकले थे जब
देखा था हर ओर
जहाँ जहाँ
खतरे के निशाँ बने थे