तुमने कहा
शरीर
वह देह हो गई
तुमने कहा
मन
वह प्राण हो गई
तुमने कहा
रूप
वह संवर गई
तुम कहते रहे
वह होती रही
आज वह
धुंधलाई आँखों से
तलाश रही
खुद को
क्या हो गई है
वह
रूप देह प्राण
सब छुडा चले
अपना हाथ
सिसक रही
उस पेड सी
जिस पर आज
क्रॉस लगा है
कल कटा जाएगा
शरीर
वह देह हो गई
तुमने कहा
मन
वह प्राण हो गई
तुमने कहा
रूप
वह संवर गई
तुम कहते रहे
वह होती रही
आज वह
धुंधलाई आँखों से
तलाश रही
खुद को
क्या हो गई है
वह
रूप देह प्राण
सब छुडा चले
अपना हाथ
सिसक रही
उस पेड सी
जिस पर आज
क्रॉस लगा है
कल कटा जाएगा
सिसक रही
ReplyDeleteउस पेड सी
जिस पर आज
क्रॉस लगा है
कल कटा जाएगा
बहुत अच्छी पंक्तियां है
.
ReplyDelete…वह देह हो गई
…वह प्राण हो गई
…वह संवर गई
…तुम कहते रहे
वह होती रही
त्याग , समर्पण , सच्चा प्यार !
कितना कुछ छुपा है इन शब्दों में , इन भावों में
आदरणीया वत्सला जी
सादर नमस्कार !
आपकी कविताओं में जो गहराई हुआ करती है , इस रचना में भी मौज़ूद है … आभार !
साथ ही
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार