आती हैं
लौट लौटकर
शिशिर के
कुहासे में सिमटी
यादें
आज भी
वह शिवलिंग
बनता है
हर साल मुझ में
देह उत्सव
हो जाती है
रोम रोम बाती सा
जलता है
लौट लौटकर
शिशिर के
कुहासे में सिमटी
यादें
आज भी
वह शिवलिंग
बनता है
हर साल मुझ में
देह उत्सव
हो जाती है
रोम रोम बाती सा
जलता है
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