vatsalworld
Sunday, 24 July 2011
अषाढ़ी फुहारें
चातक की प्यासी
उन्सांसे अंतस
अकुलाती थीं
तब अषाढ़ी बूंदे
तपते मन पर
झरती थीं
आज भी
झिरमिर फुहारों से
भीग रहा है
मन
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