1.
समंदर जहाँ था
कहाँ था वहाँ
था
मछली की आंख में
उसकी आंख थी
जहाँ
था
मन मेरा वहाँ
2.
जब
पी रहे थे
हम
घूँट जीवन के
तब वह
निगल रही थी
छोटी छोटी
मछलियां
3.
मछली की आंख
नहीं थी
उस तैल में
था
द्रौपदी का मन
अर्जुन की आंख
खुल रही थी
द्रौपदी की पलक में
4.
समंदर
जल पीता रहा
पोर पोर उसका
मछली में
जल होता गया
अनंत
5.
वह निगल गई
एक दिन
स्त्री की आंख
समंदर से
भयभीत
रहने लगी
आज तक
6.
वह
कहाँ से लाई
जल
तुमने जब भी
जानना चाहा
प्यास रह गई
हर पल
7.
तेरी आंख
आज भी है
भरी हुई
जीवन से
कट रही थी
जिस पल
क्या कर रही थी
साक्षात्कार
जीवन से
8.
कांच की
दीवार पार
उसकी आंख से
हर दिन
टपकती दो बूँद
तुमसे दूर
होने के बाद
यूँही तो
हँसता रहा
मन
9.
तू सोई नहीं
अपलक निहारती
पथ
वह तो गया
अब केवल
जल ! जल ! जल !
समंदर जहाँ था
कहाँ था वहाँ
था
मछली की आंख में
उसकी आंख थी
जहाँ
था
मन मेरा वहाँ
2.
जब
पी रहे थे
हम
घूँट जीवन के
तब वह
निगल रही थी
छोटी छोटी
मछलियां
3.
मछली की आंख
नहीं थी
उस तैल में
था
द्रौपदी का मन
अर्जुन की आंख
खुल रही थी
द्रौपदी की पलक में
4.
समंदर
जल पीता रहा
पोर पोर उसका
मछली में
जल होता गया
अनंत
5.
वह निगल गई
एक दिन
स्त्री की आंख
समंदर से
भयभीत
रहने लगी
आज तक
6.
वह
कहाँ से लाई
जल
तुमने जब भी
जानना चाहा
प्यास रह गई
हर पल
7.
तेरी आंख
आज भी है
भरी हुई
जीवन से
कट रही थी
जिस पल
क्या कर रही थी
साक्षात्कार
जीवन से
8.
कांच की
दीवार पार
उसकी आंख से
हर दिन
टपकती दो बूँद
तुमसे दूर
होने के बाद
यूँही तो
हँसता रहा
मन
9.
तू सोई नहीं
अपलक निहारती
पथ
वह तो गया
अब केवल
जल ! जल ! जल !
पूरी सीरीज अच्छी लगी. आपकी भाषा समृद्ध है और शिल्प सधा हुआ. बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
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