Tuesday 2 August 2011

जब आई होगी ......

तपते शरीर की बचैनी
टूटती देह और मन
न था पास में
कोई स्पर्श जल
ढल रहा था सूरज
कि तुम्हारा जीवन

नरम गरम बिस्तर नहीं
पत्थर की चादर
मुड़े हुए हाथ का तकिया
अंग अंग में धसने लगा था
देह में पीड़ा
क्या लहू बन उतर गई थी
अकेलेपन के
अंधकार पीते हुए
रिश्तों की नरमाहट बिना

कैसे तैयार हुए
लम्बी यात्रा पर
जाने के लिए

क्या क्या देखते रहे तुम
उस काल की किताब में
मेरा नाम भी
पढ़ा था कि नहीं

देह केंचुल होकर
छूटना चाहती थी
तुम्हारी

मन मेरा
काँटों से पहले ही
छिलने लगा था

उजले धुले वस्त्रों पर
जिंदगी की कालिख लिए
तुम किस दिन से
इस प्रेयसी का इंतज़ार
करने लगे थे

जब अंधेरों के
तिलचट्टे खाने लगे थे
घाव रिसने लगे थे
चमगादड़
जब तब आकर
कहोंचते थे उन्हें

तब
मन की टिटहरी ने
टीहू टीहू की टेर में
अंतिम पावस का
ऐलान कर दिया था

तुम खुश थे या नहीं
ईश्वर ही साक्षी है

कैद सदा दुःख देती है
पर कोई तो था जो
ले जाना चाहता था
मुक्ति की ओर

किसी दिन की कोई प्रार्थना
उतर गई होगी
अंधी होकर उस गुफा में

बाहर के शोर ने
जब तुम्हारा अनकहा
सुनने से मना कर दिया था

निर्मम अनुभूतियों ने
असलियत समझा दी थी
या
उम्मीदों से दमन झटककर
उसी से लौ लगा बैठे थे

छोटी सी उमर  में
कितने जन्मों की लड़ाई
लड़ रहे थे तब

क्या चल रहा था
ज़ेहन में तुम्हारे

उमड़ते घुमड़ते सागर में
क्षमा की लहरें थीं
या फेन थे नफरत के

महसूस हुआ
रिश्तों का खोखलापन
'मैं' का घिनोंनापन
या अपना अबोलापन

क्या पाया था
जीवन का दिया
निर्वासन या
इस प्रेयसी का
आलिंगन

हमारे दर्शन और तर्क
व्याख्याएं और शब्द
झूठे पड गए होंगे शायद
तुम्हारो दर्शन के सामने

सच का चेहरा
देख लिया था या
जान गए थे तुम कि
खोज यहाँ से
शुरू होती है या समाप्त

( अपने जवान बेटे की असमय मृत्यु पर एक माँ के मन की श्रधांजलि. जब वह अपनों से दूर था. पर अपना कौन यही सवाल है जिसे माँ पूछना चाहती है बेटे से )


4 comments:

  1. कविता मुझे अच्छी लगी.तुरत पढते हुए इतना ही कह पा रहा हूँ. पर शायद लौटना होगा इसके कुछ और पाठ के लिए.

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  2. आदरणीय वत्त्सला जी .आपकी कविता मर्मस्पर्शी है ! कविता की पंक्ति '' साथ खोज यहाँ से
    शुरू होती है या समाप्त ''.................यह गंभीर अर्थ देता है ......मै अपनी स्व रचित कविता संप्रेषित कर रहा हूँ संदर्भों में शायद सार्थक हो

    अनुबंधों की प्रतिबद्धता के बीच
    जीवन गुजर जाता है
    एक का टूटना दुसरे का विखरना
    देखते रहना
    जीवन का अशेष क्रम
    अनुक्रम से
    निभ जाते हम सभी
    कभी -कभी
    कोई किसी का नहीं होता
    होती प्रतिबद्धता
    (संकलन के कुछ अंश ) फिर कभी और ..........

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  3. पूरी कविता अनुभूति के अनेकानेक बिम्ब सामने खड़ा करती है,भावनाएं घनीभूत हो कुछ टटोलने का प्रयास करती दिखायी देती है..

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  4. Man-mastishak ko math dene aur bhavuk kar dene valee marmik kavita ke sirjan ke liye badhai.

    Meethesh nirmohi,Jodhpur.

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