Monday 25 July 2011

तुमने कहा

तुमने कहा
शरीर
वह देह हो गई

तुमने कहा
मन
वह प्राण हो गई

तुमने कहा
रूप
वह संवर गई

तुम कहते रहे
वह होती रही

आज वह
धुंधलाई आँखों से
तलाश रही
खुद को

क्या हो गई है
वह

रूप देह प्राण
सब छुडा चले
अपना हाथ

सिसक रही
उस पेड सी
जिस पर आज
क्रॉस लगा है
कल कटा जाएगा 

2 comments:

  1. सिसक रही
    उस पेड सी
    जिस पर आज
    क्रॉस लगा है
    कल कटा जाएगा

    बहुत अच्छी पंक्तियां है

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  2. .



    …वह देह हो गई

    …वह प्राण हो गई

    …वह संवर गई

    …तुम कहते रहे
    वह होती रही


    त्याग , समर्पण , सच्चा प्यार !
    कितना कुछ छुपा है इन शब्दों में , इन भावों में


    आदरणीया वत्सला जी
    सादर नमस्कार !

    आपकी कविताओं में जो गहराई हुआ करती है , इस रचना में भी मौज़ूद है … आभार !

    साथ ही
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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